Saturday, 17 June 2017

शहर में बरसात

'शहर में बरसात '
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तेज़ हवाओं ने अंधड़ का रूप ले लिया था । काली-पीली आँधी के साथ ही उमड़-घुमड़ कर बादलों की फ़ौज भी पीछे-पीछे चली आयी थी । गरज कर बरसे थे मेघा कल रात मेरे शहर में भी । पर बारिश के साथ न उपवन में खिलने वाले गुलाब ,बेला और चमेली की याद आई और ना आम-अमराई की कल्पना ही । न मोर- मोरनी का नृत्य न कोकिल का गान । न पपीहा ही बोले। 
हाँ बचपन में सुनी बाल-कविता के बोल ज़रूर याद आने लगे-
"बारिश आई बारिश आई 
देखो कितनी ख़ुशियाँ लाई 
धुल गई छत धुले मकान 
धुल गईं सड़कें धुली दुकान "
शायद शहरों में धुलाई के ही विषय में ही अधिक सोचा जाता है बारिश के मौसम में ।
बारिश के साथ ही एक अजीब सी उमस का अहसास । सबके सब दुबक रहे थे अपने घरों में । तभी अचानक बत्ती गुल । कमरों को छोड़ बरामदों -बालकनियों की शरण लेनी ही पड़ी । बारिश तो रुकने का नाम नहीं ले रही थी तो बिजली भला आती भी तो कैसे?
शहरवासियों को अब नयी चिंता सताने लगी थी। सड़कों पर भरने वाले पानी की। साथ-साथ सड़कों के किनारे और झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वाले तथा पानी के भराव वाली जगहों पर भी अवैध क़ब्ज़ा अतिक्रमण कर घर बना कर रहने वाले लोगों की। जैसे-जैसे बरसात ज़ोर पकड़ रही थी वैसे-वैसे सरकार व प्रशासन की नींद उड़ती जा रही थी। हम जैसे आम आदमी की सहानुभूति भी इनके प्रति उमड़ने लगी थी । बारिश से पहले भी ये सब यहीं थे पर तब किसी का भी ध्यान इस ओर नहीं गया । बारिश आते ही सबके दिलों में इनके लिए बरसाती नाले बह निकले थे। सबके दिल मोम की माफ़िक़ पिघलने लगे थे। मन ही मन बरसात रुकने की प्रार्थना सी करने लगे थे मानों सब । शहर के बाशिंदों की चिंता सब ओर सबको ही सताने लगी।
उधर गाँव में बसने वाला किसान आसमान ताक रहा था। पर किसान की याद ही नहीं थी ,तो परवाह किसको और क्यों होती भला । शहर में दिखता ही कहाँ है किसान और फ़ुरसत ही कहाँ है शहर के निवासियों को गाँव जाने की ? सुबह सड़कोंपर जमा हुए पानी के कारण घंटों ही जाम व पानी में डूबते-तैरते वाहनों की तस्वीरों के साथ अतिवृष्टि से आपदा-प्रबंधन के लिए प्रशासन के जागरूक होने की ख़बरें समाचारपत्रों के मुख पृष्ठ पर और टी वी चैनल्स की सुर्ख़ियो में थी ।
उधर गाँव में अनावृष्टि से जूझता किसान दरकती ज़मीन में समा जाने के लिए और भी दुबला हुए जा रहा था ।
प्रेरणा शर्मा (16-6-2017)

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