Thursday, 13 October 2016

यादों के वस्त्र

'यादों के वस्त्र'
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आदमी की जिंदगी ,अनुभवों का पिटारा ! पिटारे में वर्षों से सहेजे हुए यादों के नायाब वस्त्र , भाँति-भाँति के ! जितने प्रकार उतने ही उपयोग | पहनना,ओढ़ना,बिछाना,सजाना!और भी अनेक.....| जरूरत के माफ़िक | स्पर्श का सुख; टेक्सचर जैसा हो - खादी , मलमल,रेशमी,पॉलिएस्टर---|कभी नरम-मुलायम तो कभी खुरदरा सा | धोना,   निचोड़ना,सुखाना ---| नित-नित,यही तो करता है आदमी |
अजब हैआदमी भी ! कभी गोल-मोल कर मन की गठरी में बंद करता है इन्हें ,तो कभी इश्तरी से सलवटें मिटा,मन की आलमारी में करीने से  सहेजकर,तह दर तह बनाताहै| कभी  चहेती पोशाक बना हैंगर पर लटकाता है और भाव-विभोर हो निरखता जाता है | कुछ मन को इतना भा जाते हैं कि पहनकर उतारने को मन ही नहीं मानता | अलग ही रूप अलग ही काम |
साडी के आँचल सा लहराते, दुपट्टा बन गलबहियाँ डाल इतराते, कमीज बन सीने पर बोताम लगाते ,पतलून बन कमर पर आराम फरमाते ,कुरता-पायजामा सा शाही अंदाज दिखाते; नाना रूप ,नाना रंग |
एक से बढाकर एक |
डिजाइन तो देखिए –बेजोड़! कोई सुर्ख लाल फूलों वाली तो कोई बेल-बूँटेदार | किसी पर लेस तो कोई गोटेदार |किसीपर हाथ की उम्दा कढ़ाई-कश्मीरी कांथा,सिंधी---तो कोई पेंटिंग और प्रिंटिंग में लाजवाब | वाह भई वाह!
अतीत की जितनीसन्दूकचियाँ खोलो, सब ठसाठस|एक नहीं अनेक |द्रोपदी के चीर से बढ़ते जाते यादों के पट | कृष्ण भगवान ने तो कहा था –
“वस्त्राणि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृहणाति ------“ पर ये यादों के वसन कभी जीर्ण होते हैं भला !
यादों के वस्त्रों का खजाना बढता ही जाता है |जीर्ण हुए बिना ही नवीन जो आ जाते हैं ये |अब आदमी कम्प्रेशर और वेक्यूम जैसी तकनीक का सहारा लेकर कम जगह में ज्यादा और अधिक समय तक संभालने में लगा रहता है और एक दिन अचानक यादों के अंबर में जिंदगी को सहेजता-सहेजता ही अंबर की ओर कूच कर जाता है ,ढाई ग़ज वस्त्र में सिमटकर|

                    लेखिका – प्रेरणाशर्मा

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