'सोई रातों के जागे सपने'
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सोई रातों के जागे सपने
उन्नींदी आँखों में पले;
जुगनू सरीखे ख़्वाब मनुज के
कभी चमके कभी मंद हुए ।
गहराई रातों के अँधेरें
शमां का उजाला दूर करे;
घनघोर घटा के बादल में
ज्यों पूनम का चाँद खिले।
मानव-मन के स्वप्न सजीले
कभी ठहरे कभी दौड़ पड़े;
उर-आँगन की गहराई में
अगणित आशा-दीप जले।
स्याह निशा के साये में
चमक दामिनी संग लिए;
भाव भरे बादल उमड़े तो
कभी गरजे कभी बरस पड़े।
बिजली की चमकीली रेख
क्षण-भर आलोकित पथ देख;
मृग मरीचिका से सपनों में
आबाद हुए मन के वीराने।
रचना-
प्रेरणा शर्मा -29-8-16
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