'चैरेवेति-चैरेवेति '
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मन की किताब के पन्नों पर
लिखता -मिटाता रहा
अनगिनत कहानियाँ
वह हर रोज़ ही तो।
क़लम थी , काग़ज़ भी था
न थे तो बस वे शब्द
जो कह सकें
उसके अहसासों को
रंग भरता रहा
आहिस्ता-आहिस्ता
अपनी कहानी के
किरदारों मे।
आम को ख़ास बनाने के
ख़्वाबों की ख़्वाहिशों में,
निशा के बाद
भोर की चाहतों में
सोतेहुए भी जागता रहा ।
बुनता- उधेड़ता रहा
ज़िंदगी के लिए गरम कपडे ।
चाहतों को झोले में समेटे
कभी पगडंडी तो कभी
घाटियों से गुज़रता रहा।
वह आदमी ही तो था
जो हर हालमें चरैवेति की
धुन में आगे बढ़ता रहा।
(कर्मशील मानवों को समर्पित)
रचना-
-प्रेरणा शर्मा 2-5-16
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