'मानिनी काम्या'
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1-
लचक रही
कामिनी की कमर
मोहक लगे
मन में प्रीत जगे
सहज हौले-हौले।
2-
कुंतल केश
कमर पर झूलें
सधे क़दम
मंथर चाल चले
बल खाती बेल सी।
3-
मंद समीर
लहराता आँचल
मानिनी काम्या
इठलाते नयन
मधुर नेह भरे।
4-
हौले से डोले
मनवा संग-संग
पुरवाई सा
बिन पंख ही उड़े
जा कल्पना लोक में।
5-
निस्तब्ध बोल
अधरों पर धरे
तारीफ़ करें
या निहारें अपलक
चातक-चकोर से ।
[रचना-प्रेरणा शर्मा]
इस तरह की कविता को 'तांका' कहते हैं।यह जापानी विधा है जिसमें हिंदी भाषी लोग भी अब खूब रचना कर रहे हैं।
इसमें अंत में तुकबंदी आवश्यक नहीं होती परंतु हर पंक्ति में निश्चित वर्ण
पहली में पाँच ,दूसरी में सात
तीसरी में पाँच चौथी में सात
और पाँचवी में सात वर्ण(अक्षर)
होते हैं।
प्रेरणा शर्मा ,जयपुर (22-10-16)