Sunday, 17 September 2017

माँ-दादी के हिस्से का इतवार

'आज का इतवार'
–––––––––  -प्रेरणा शर्मा
इतवार की सुबह
बुन रही थी ख्वाब
जागते हुए सोने और
देर से उठने के लिए।

पता है ना आपको
घर सारा जागा था
कल देर रात तक ,
सुबह इतवार मनाने के लिए।

सुबह,माँ जाग तो गई थी
रोज की आदत जो हो गई थी
मगर सोते-सोते ही
करवटें बदल रही थी।

दादी की पूजा की घंटी
थम ही नहीं रही थी
अलार्म की आवाज सी
कानों में बज रही थी।

पिता अनमने से उठ बैठे थे
आज का अखबार हाथ में लिए
अंगड़ाई और उबासी को मिलाते हुए
चाय की चुस्कियों का ख्वाब जगाते हुए।

दादा जी नाश्ते के इंतजार में
मेरे पेट में भी चूहे लगे दौड़ने।
रसोईघर में लगे दोनों झांकने
वहाँ की शांति हमको लगी काटने।

चाय से ले सैंडविच तक का बीड़ा
हमने आज अपने कंधों पर उठाया।
कुछ फलों पर भी हाथ आजमाया
लगा सूरज पश्चिम से निकल आया।

दादी की घंटी ने
थोड़ा विराम पाया
जब तिरछी नजर को
रसोई की ओर घुमाया।

माँ और दादी ने जब
हमको रसोई में पाया
एक मीठी सी मुस्कान का
तोहफा हमने तुरंत पाया।

आज इत्मिनान का इतवार
यों हमने मिलकर बिताया
आज माँ-दादी के हिस्से में
उनका  इतवार भी आया।

-प्रेरणा शर्मा ,जयपुर (17-9-17)

Saturday, 16 September 2017

प्रहरी की पत्नी

'धन्य है प्रहरीपत्नी'

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वह देखो प्रहरी की पत्नी
आशा-दृष्टि सीमा पर लगी।
दिन-रात चैन से सो न सकी
नयनों में  नित हर रात कटी ।

वज्र बना उसने अपना हृदय
प्रिय को सीमा पर विदा किया।
सपनों की दुनिया से जाग आज
निज-प्रेम देशहित वार दिया।

अपनी पलकों के ख्वाबों में
प्रहरी के मन को बाँच लिया।
देश-प्रेम के जज्बातों के रंग से
झट उसके मन को  सरोबार किया।

केवल  उसकी हिम्मत है जो
हँसते-हँसते यों विदा किया
अकथ कहानी सी बनकर,
यथार्थ का साक्षात्कार किया।

आँखो से ओझल होते ही
नयनों से बह निकली निर्झरणी
थे अधर मौन मन-सागर प्लावित
धन्य है प्रहरी-पत्नी तेरी छाती।

-प्रेरणा शर्मा (17-09-17)

(चित्र इंटरनेट से साभार उद्धृत।)