मानव! धरती के प्राणियों में सबसे बुद्धिमान जीव!
पर विडंबना यह कि अपने से अधिक बुदधिमान कोई मनुष्य किसी दूसरे को मानने को तैयार ही नही?
हम अनुभव और ज्ञान के क्षेत्र में भले ही अभी पैर चलना ही सीख रहें हो पर मौका मिलते ही ऐसा दिखाने लगते हैं जैसे ओलंपिक रेस के विजेता हों।
हद तो तब हो जाती है जब सुनी-सुनाई बातों या खुद की धारणाओं को नियमों की कसौटी बनाकर अन्य मनुष्यों के विषय में व्यक्तिगत राय से आकलन ही नहीं करते अपितु तुरंत उसके विषय में सही -गलत ,अच्छा-बुरे होने का प्रमाणपत्र जारी करने को उतावले हो जाते हैं। और इसके प्रचार -प्रसार में भी लग जाते है जोर -शोर से।
स्वयं तो सर्वज्ञानी ;बाकी बचे सब नादान अज्ञानी!
वैसे भी यह काम इंटरनेट ने काफी आसान कर दिया
ही है । कहीं से भी सुविचार उठाओ और हो गया काम ।
कोई पूछे हमसे कि अमल करके दिखाओ ज्ञान की बात पर।
मन में हवा निकले गुब्बारे सा अहसास भले ही हो रहा हो पर सामने सीमा पर डटे जवान की तरह सीना ताने अपने आप को साबित करने में जुट ही जाएंगे।
आप सोच रहे होंगे मैं यह सब आपको बता क्यों रही हूँ? सभी तो जानते हैं।
जी! आप ठीक कह रहे हैं,परंतु अपनी-सोच के दायरे को ही ब्रह्मांड का छोर समझ माप(क्षेत्रफल)का लेखा लिखने वाले लोगों में से एक की लिखी पोस्ट ने मेरी संवेदना के तालाब में कंकड़ के समान विचार- तरंगों में हलचल मचा दी।
सोचा , सोच के दायरे में आपको भी साथ ले लूँ ,अकेले क्यों झेलूँ ?
उस आलेख में उन महानुभाव ने बताया कि एक दिन
वे अपने जानकार परिवार में गए जो कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली के हिसाब से मध्यम वर्ग का था।
बिजनेस करने वाले परिवार था। उन्हें आश्चर्य हुआ कि
इस परिवार में बहू बनकर आई लड़की के पास शिक्षा की डिग्रियाँ लड़के से अधिक थी। पी .जी. की डिग्री के साथ ही फ्रेंच,जर्मन भाषा का डिप्लोमा तथा फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली लड़की की शादी उस घर में कैसे हो गई ?यह सोचकर विचलित थे कि इतनी टेलेंटेड लड़की
के साथ पता नहीं क्या मजबूरी रही होगी जो उसका संबंध उस घर में हुआ?
उनका कहना था 100 प्रतिशत उस लड़की के साथ गलत ही हुआ था वह इतनी पढ़लिखकर अंग्रेजी भाषा को बोल सकने वाली उस साधारण से घर में बहू कैसे बन सकती थी?लड़का भी ज्यादा शिक्षित नहीं था।
इसी बात को लेकर उन्होंने पोस्ट में अपने तथाकथित शिक्षित सोच का परिचय देते हुए लिखा कि जोड़ियाँ ऊपर से बनती है ऐसा सोचकर वे चुपचाप रहे।
हैरानी के साथ बस मन में ही अफसोस करके रह गए।इस बात को उस परिवार से नहीं पूछा।
पर उस लड़की के साथ हुए अन्याय के दर्द को महसूस कियाऔर उसे बताने के लिए लेखन का सहारा लिया।तर्क दिया गया ताकि किसी और के साथ ऐसा न हो।(उनका पेशा भी तो शिक्षक का है।)उनके विचार पढने के बाद मेरे जहन मे उठ रहे चंद सवालों के जवाब क्या उनके या हमारे पास होंगे?
क्या डिग्री व विदेशी भाषाओं की जानकरी होना ही ज्ञानवान होने का प्रमाण है।
यदि लड़का व्यावहारिक व व्यावसायिक दृष्टि से कुशल होकर बिना डिग्री के अपने से उच्च डिग्रीधारी लड़की के साथ शादी करे तो क्या यह गलत है?
लड़की लड़के सेे ज्यादा पढी हुई क्यों नहीं हो सकती ?
क्या सिर्फ इसलिए कि आम भारतीय समाज में धारणा है किे लड़का लड़की से ऊँची नहीं तो बराबर शिक्षा की डिग्री वाला तो होना ही चाहिए?
क्या संस्कार व व्यावसायिक कौशल की कोई अहमियत नही होती है?
क्या केवल सैद्धांन्तिक ज्ञान ही महत्व रखता है?
लड़की यदि इतनी ज्ञानवान है तो क्या उसे स्वयं अपने जीवन के निर्णय में भागीदार नहीं होना चाहिए था?
व्यवसाय करने के लिए भी तो बौद्धिक क्षमता चाहिए होती है।
ऐसा भी तो हो सकता लड़की की सहमति से वह रिश्ता हुआ हो परिवार व लड़के के सुसंस्कारों को देखकर।संभव यह भी हो सकता है कि अब वह लड़की ही पूरे परिवार में शिक्षा का बिगुल बजाकर उच्च शिक्षा में प्रेरक बन जाए।
अक्सर देखा जाता है कि लड़की तो कम पढी लिखी हो चाहे पर लड़का तो उच्च डिग्री वाला ही होना चाहिए।
मानवीय गुण हों न हो ,व्यवसाय कुशल हो न हो,सामंजस्य के गुण हों न हो ,पर औपचारिक शिक्षा की डिग्री बुद्धिमता का प्रमाण जो मानी जाती है।
हमें सोच के दायरे मे सकारात्मक विस्तार देना होगा।
अपने ही बनाए नियमों की परिधि के अलावा भी दृष्टिकोण बदलना होगा।पुरातन हो चली धारणाओं को छोड़कर नवीन सोच के दायरे को विस्तार देना होगा।
रचनाकार -प्रेरणा शर्मा 27-12-16