Saturday, 31 December 2016

नव वर्ष का नव-प्रभात

'नववर्ष का नव प्रभात'
––––––––––––

भोर की लालिमा से रक्ताभ
उषा-आदित्य  हो रहे प्रमुदित
नव वर्ष के स्वागत को आतुर
कर रहे विदा आज वर्ष विगत।

छाया नव-वर्ष का नव प्रभात !

क्षितिज का आँचल थामें
रश्मि-रथ पर होकर सवार
पर्वतों की ओट से हौले से
सूर्य-प्रभा का फैला प्रकाश ।

आया नव-वर्ष का नव प्रभात!

प्राची से रवि का रथ सज्जित।
जीवन में  उत्साह -आनंद  भरे।
आशा का अनुपम सूर्य उदित
तन-मन में स्वर्णिम उजास भरे ।

चमका नववर्ष का नव प्रभात!

जीवन-बदली में सुख-नीर भरे
सृष्टि में नवजीवन संचरित करे।
जीवन से  निराशा-घन दूर करे
ज्यों तम रजनी से रजनीश हरे।

शुभ हो! नववर्ष का  नवप्रभात!

रचनाकार-

-प्रेरणा शर्मा  (1-1-2017)

 

Friday, 30 December 2016

मंजिल

' मंज़िल'
-----------

मुमकिन नहीं होता
मनचाही मंज़िल पाना
आसान राहों पर
सफ़र करके ।
सफ़र का लुत्फ़ सुहाना
कभी रोकेगा पड़ाव पर ,
कभी बुलाएँगी बहारें
शोख़ फ़िज़ाओं में।
लेने लगे
सफ़र का आनंद
तो दूर नजर आएगी
मनचाही मंज़िल ।।
देखो ठहरकर
चाँद का उजाला
रात की सियाही में
दिल को बहुत लुभाएगा
मगर रुक गए
चाँद से बातें करने
तो भोर की लालिमा
का आनंद कैसे आएगा ?

रचनाकार-
प्रेरणा शर्मा(18-10-16)

Thursday, 29 December 2016

महाप्रयाण

'महाप्रयाण'
--------------
आज सुदीप्त चेतना  ब्रह्मलीन  को अधीर हो उठी ,
काट जग के मोहबंध परमात्म से मिलन को चली।
पंच भौतिक तन को छोड़ पंचतत्व में विलीन हो चली
ताकती थी शून्य को उस शून्य को प्रयाण कर चली।।

महाप्रयाण के इस सफ़र में आत्मतत्व में मिल चली ,
जग के साथी छोड़ पथ में विशुद्ध-निर्विकार हो चली ।
जो पहचान थी उसकी ,हो समतल धरा सम छोड़ चली ,
मिल गयी धरा में देह जिसमें थी खेलती वह सदा रही ।।

हो रहा अग्नि को समर्पित जिससे वजूद था उसे मिला ,
काम  ,क्रोध ,लोभ ,मोह-मद सब एक साथ जला।
हेम सा उज्ज्वल सतकर्म ही अग्निशिखा में चमक रहा,
महाप्रयाण के सफ़र में जीवात्म परमात्म से मिल रहा ।

रचना- प्रेरणा शर्मा कृत (24-9-16)

परिवार में आत्मीय जन की अंतिम यात्रा के समय हृदय के भावों ने कुछ यह स्वरूप लिया ।
-प्रेरणा शर्मा(3012-16)

समय समय की बात

'समय समय की बात '
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समय
चलता हुआ दिखता नहीं
फिर भी कभी  रुकता नहीं।
ख़ुद भागता रहता
साथ में रहता भगाए
आदमी को भी।
एक पल भी समय को
भला फ़ुरसत मिली कभी?
अब को तब बनाता हुआ
भूत और भविष्य की
डोर से झूला बना
वर्तमान पर आदमी को
झूला झुलाता हुआ
वक़्त भला ठहरता है कहीं?
कोई है समय का मारा
तो किसी ने वक़्त से
जीवन को सँवारा।
कभी काटता है समय कोई
तो काटे नहीं कटता
वक़्त कभी।
उफ़ ! यहाँ तो वक़्त के
मारे सभी!
कोई बोलता -'समय ख़राब है'
तो कोई वक़्त का
पहलवान है।
समय की न हो सकती
ख़रीद-फ़रोख़्त
न पा सकता समय
देकर कोई मोल
कहते हैं समय तो
है ही अनमोल ।
समय समय की बात है
समय बड़ा बलवान है।
समय बदलते वक़्त न लगता
समय के पहिए से
जीवन-रथ निरंतर
गतिमानहै।
समय भला कब करता
एक पल भी आराम है?
कहते हैं -'आराम हराम है।'

रचनाकार-
प्रेरणा शर्मा (30-12-16)

वह एक पल

'वह एक पल '
–---------------

आदमी पीढ़ियों तक की योजनाएँ बनाता है ,सपनों की रंग भरी दुनिया सजाता  है । किसी को नहीं पता होता कि किस पल में ज़िंदगी श्याम-श्वेत चित्र सी आँखों के सामने तैरने लगे और लाख कोशिश करने पर भी न उसमे  रंग नज़र आए और न जीवन भरा जा सके ।
वह पल जब पहाड़ की चोटी पर खड़े हो और पता चले -
ज्वालामुखी फूटने वाला है।
वह पल जब आप बीच समुद्र में हों और तूफ़ान की सूचना आ जाए ।
वह पल जब घने जंगल में रास्ता भूल गए हों और अचानक सामने  जंगल का राजा आकर खड़ा हो जाए।
वह पल जब विमान गगन की ऊँचाई नाप रहा हो इंजन काम करना बंद कर दे ।
वह पल जब बच्चा जन्म तो ले ले पर अगले ही क्षण दुनिया का मुँह भी न देख सके ।
वह पल जब सीना दुश्मन की गोलियों से छलनी हो रहा हो क़दम दुश्मन से लोहा लेने को डटे हो और पास में ही जंग लड़ता सहोदर शहीद हो जाए।
वह पल जब बीमार भी ना हो ओर दुर्घटनाग्रस्त हो कोई प्रियजन देखते ही देखते दुनिया से कूच कर जाए ।
वह पल आदमी की औक़ात को आइना दिखाता ख़ौफ़नाक सच लिए जब आता है तो आदमी के क़दम ठहर जाते हैं। आँखें पथरा जाती हैं और वह लुटा-ठगा ,बदरंग हुआ ,जीते जी मर रहा होता है । मुँह से न बोल निकालते हैं , न आँखें कुछ देख पाती हैं। टूटकर बिखरते हुए भी निस्तब्ध!!!

वह पल जो
एकाकार कर दे
जड़ - चेतन ;
उससे पहले ही
क्यों न जी लें
ज़िन्दगी हम-तुम
खुशियाँ हर पल।।

रचनाकार-
प्रेरणा शर्मा (29-12-16)

Tuesday, 27 December 2016

सोच का दायरा

मानव! धरती के प्राणियों में सबसे बुद्धिमान जीव!

पर विडंबना यह कि अपने से अधिक बुदधिमान कोई मनुष्य किसी दूसरे को  मानने को तैयार ही नही?

हम अनुभव और ज्ञान के क्षेत्र में भले ही अभी  पैर चलना ही सीख रहें हो पर मौका मिलते ही ऐसा दिखाने लगते हैं जैसे ओलंपिक रेस के विजेता हों।

हद तो तब हो जाती है जब सुनी-सुनाई बातों या खुद की धारणाओं को नियमों  की कसौटी बनाकर अन्य मनुष्यों के विषय में व्यक्तिगत राय से आकलन  ही नहीं करते अपितु तुरंत उसके  विषय में सही -गलत ,अच्छा-बुरे होने का प्रमाणपत्र जारी करने को उतावले हो जाते हैं। और इसके प्रचार -प्रसार में भी लग जाते है जोर -शोर से।

स्वयं तो सर्वज्ञानी ;बाकी बचे सब नादान अज्ञानी!
वैसे भी यह काम इंटरनेट ने काफी आसान कर दिया
ही है । कहीं से भी सुविचार उठाओ और हो गया काम ।
कोई पूछे हमसे कि  अमल करके दिखाओ ज्ञान की बात पर।
मन में हवा निकले गुब्बारे सा अहसास  भले ही हो रहा हो पर सामने सीमा पर डटे जवान की तरह सीना ताने अपने आप को साबित करने में जुट ही जाएंगे।

आप सोच रहे होंगे मैं यह सब आपको बता  क्यों  रही हूँ? सभी तो जानते हैं।

जी! आप ठीक कह रहे हैं,परंतु अपनी-सोच  के दायरे को ही ब्रह्मांड का छोर समझ माप(क्षेत्रफल)का लेखा लिखने वाले लोगों में से एक की लिखी  पोस्ट ने मेरी संवेदना के तालाब में कंकड़ के समान विचार- तरंगों में हलचल मचा दी।
सोचा , सोच के दायरे में आपको भी साथ ले लूँ ,अकेले क्यों झेलूँ ?
उस आलेख में उन महानुभाव ने बताया कि एक दिन
वे अपने जानकार परिवार में गए जो कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली के हिसाब से मध्यम वर्ग का था।
बिजनेस करने वाले परिवार था। उन्हें आश्चर्य हुआ कि
इस परिवार में बहू बनकर आई लड़की के पास शिक्षा की डिग्रियाँ लड़के से अधिक थी।  पी .जी. की डिग्री के साथ ही फ्रेंच,जर्मन भाषा का डिप्लोमा तथा फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली लड़की की शादी उस घर में कैसे हो गई ?यह सोचकर विचलित थे कि इतनी टेलेंटेड लड़की
के साथ पता नहीं क्या मजबूरी रही होगी जो उसका संबंध उस घर में हुआ?
उनका कहना था 100 प्रतिशत उस लड़की के साथ गलत ही   हुआ था वह इतनी पढ़लिखकर अंग्रेजी भाषा को बोल सकने वाली उस साधारण से घर में बहू कैसे बन सकती थी?लड़का भी ज्यादा शिक्षित नहीं था।

इसी बात को लेकर उन्होंने पोस्ट में अपने तथाकथित  शिक्षित सोच का परिचय देते हुए लिखा कि जोड़ियाँ ऊपर से बनती है ऐसा सोचकर वे चुपचाप रहे।
हैरानी के साथ बस मन में ही अफसोस करके रह गए।इस बात को उस परिवार से नहीं पूछा।
पर उस लड़की के साथ हुए अन्याय के दर्द को महसूस कियाऔर उसे बताने के लिए लेखन का सहारा लिया।तर्क दिया गया ताकि किसी और के साथ ऐसा न हो।(उनका पेशा भी तो शिक्षक का है।)उनके विचार पढने के बाद मेरे जहन मे उठ रहे चंद सवालों के जवाब  क्या उनके या हमारे पास होंगे?
क्या डिग्री व विदेशी भाषाओं की जानकरी होना ही ज्ञानवान होने का प्रमाण है।
यदि लड़का व्यावहारिक व व्यावसायिक दृष्टि से कुशल होकर बिना डिग्री के अपने से उच्च डिग्रीधारी लड़की के साथ शादी करे तो क्या यह  गलत है?
लड़की लड़के सेे ज्यादा पढी हुई क्यों  नहीं हो सकती ?
क्या सिर्फ इसलिए कि आम भारतीय समाज में धारणा है किे लड़का  लड़की से ऊँची नहीं तो बराबर शिक्षा की डिग्री वाला तो होना ही चाहिए?
क्या संस्कार व व्यावसायिक कौशल की कोई अहमियत नही होती है?
क्या केवल सैद्धांन्तिक ज्ञान ही महत्व रखता है?
लड़की यदि इतनी ज्ञानवान है तो क्या उसे स्वयं अपने जीवन के निर्णय में भागीदार नहीं होना चाहिए था?
व्यवसाय करने के लिए भी तो बौद्धिक क्षमता चाहिए होती है।
ऐसा भी तो हो सकता लड़की की सहमति से वह रिश्ता हुआ हो परिवार व लड़के के सुसंस्कारों को देखकर।संभव यह भी हो सकता है कि  अब वह लड़की ही पूरे परिवार में शिक्षा का बिगुल बजाकर उच्च शिक्षा में प्रेरक बन जाए।

अक्सर देखा जाता है कि लड़की तो कम पढी लिखी हो चाहे पर लड़का तो उच्च डिग्री वाला ही होना चाहिए।
मानवीय गुण हों न हो ,व्यवसाय कुशल हो न हो,सामंजस्य के गुण हों न हो ,पर औपचारिक शिक्षा की डिग्री बुद्धिमता का प्रमाण जो मानी जाती है।

हमें सोच के दायरे मे सकारात्मक विस्तार देना होगा।
अपने ही बनाए नियमों की परिधि के अलावा भी दृष्टिकोण बदलना होगा।पुरातन हो चली धारणाओं को छोड़कर नवीन सोच के दायरे को विस्तार देना होगा।

रचनाकार -प्रेरणा शर्मा 27-12-16

सत्यमेव जयते

'सत्यमेव जयते'
-------------------
सारनाथ में
अशोक सम्राट ने
अंकित किया
सिंह स्तंभ पर था
देवनागरी
लिपि में लिख कर
आदर्श वाक्य
तीन शेरों के नीचे
सत्यमेव जयते।।

'सत्यमेव जयते' यही वह आदर्श वाक्य है जो भारत देश का राष्ट्र -मंत्र बना। राजकीय चिह्न का प्रयोग जहाँ -जहाँ होता है वहाँ-वहाँ पर यह आदर्श वाक्य दृढ़-संकल्प के प्रतीक स्वरूप लिखा हुआ दृष्टिगोचर होता है।
आइए ! हम भी अपने  जीवन में सत्य की जीत पर दृढ़विश्वास रखते हुए ('सत्यमेव जयते'- 'श्रम एव जयते'  को अपनाकर )श्रम करते हुए जीवन सफल बना लें ।
'ब्रह्म सत्य जगन्मिथ्या' से समझे तो हम सत्य को अपनाकर परमात्म रूप को अंगीकार कर सकते हैं ।
इन्ही भावों को दर्शाती यह रचना आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ।
    'सत्य'
     –––
सत्य है नित्य
अनंत भी है सत्य
न हो विकृत
है अपरिवर्तित
स्वतः-स्पष्ट है
न सीमा में बँधता
स्वप्रकाशित
जैसे नीलांबर में
उगे आदित्य
सत्य ही तो है
परमात्म स्वरूप
जीवनाधार
सत्यं शिवं सुन्दरं
सत्यमेव जयते।।
रचना–प्रेरणा शर्मा(27-12-16)

जीवन चले जा रहा है

'जीवन चले जा रहा है'
––––––––––
बिना रुके, बिना थके
सलिल की धार सा
निरंतर प्रवाहित
जीवन चले जा रहा है।

फ़िजाओ में बहार सा।
इंद्रधनुषी आभा के
सतरंगी अहसास सा
आसमां के उड़ते
पाखी सा
सपनों के साथी सा
जीवन चले जा रहा
प्राची की लाली सा।

पुरवा की बयार सा
बहाते हुए ले जा रहा
संग-संग अपने
अतीत की यादों को,
बीत गई बातों को।
चले जा रहा अनवरत
मिलने कल के वादों को।

पल-पल रफ़्तार देते हुए
मजबूत इरादों को।
बढ़ता जा रहा है
आगे ही आगे,
साँसों में जिंदगी थामें।
कभी मौन तो
कभी मुखर
चला जा रहा
वक्त को
मुट्ठी में बाँधे।

आज को कल
बनाता हुआ
आस की संजीवनी
पिलाता हुआ
गाफिल को गतिमान
बनाता हुआ,
जीवन चले जा रहा है
सलिल  की धार सा
बहते हुए।

फ़िजाओं मे
बहार सा
गाता हुआ
अपनी ही धुन में
गुनगुनाता हुआ
बहता हुआ
सागर की मौजों में
सैर करने
वक्त की नदिया में
ख्वाबों की कश्तियाँ
खेता हुआ
मौजों पर सवार
अठखेलियाँ करते
सलिल की धार सा
आप ही आप
बहते हुए हौले-हौले ।
यह जीवन चले जा रहा है।

रचना–
प्रेरणा शर्मा(27-12-16)

Monday, 26 December 2016

एक में दम

कहते तो हैं कि 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता' पर 'एकला चलो' भी तो सच है।इस तरह की विरोधाभासी बातों से जीवन के पग-पग पर हम सभी रूबरु होते आए हैं।
कुछ लोग बात के मर्म को समझने की बजाए शब्दों की अभिधा शक्ति को अहमियत देकर परिस्थिति, नियति,भाग्य,विधाता के मारे होकर अपने एकाकी होने का रोना रोते हुए बखूबी देखे भी जा सकते हैं।
तो आइए देखते है एक में भी कुछ दम है कि नहीं?

       ' बस एक '
       ––––––
एक फूल में सपने बसते
चाहे न बन सकती हो माला।
एक बीज उगाने पर बन वटवृक्ष
लगा देता अनेक वनमाला।
एक विचार बनकर विचारधारा
देता क्रांति को अमर सहारा।
एक मुसकान से होती मित्रता
तो एक दीप हरे तम सारा।
एक ताली से हृदय हर्षता
शब्द एक तय करता ध्येय हमारा।
'माँ ' एक शब्द जब बोले बच्चा
माँ करती न्योछावर जग सारा।
एक बोल हरता मन का दुखड़ा
एक चंद्र से चमके रात का मुखड़ा।
एक हँसी से हट जाए निराशा
एक सूर्य-किरण लाए उजियारा।
एक तारा बन अटल सत्य सम
जहाजों को  पथ दिखलाता।
उठा एक कदम आगे बढने को
सफ़र सुहाने में परिणित हो जाता।
एक 'ऊँ' शब्द में ब्रह्म समाता।
एक वोट सरकार बनाता।
एक स्पर्श परवाह बन जाता
जीवन के नव अर्थ बताता।
यही एक ,एक से मिलकर
एक और एक ग्यारह हो जाता।

रचनाकार–
प्रेरणा शर्मा,जयपुर(26-12-16)

Wednesday, 21 December 2016

नव वर्ष का अभिनंदन

नववर्ष का अभिनंदन
-------------------–------
ले मन-चंद्र की मधु-किरण
स्वागत को आतुर  नीलगगन।
नवल प्रभा-परिधान पह
नव वर्ष का करता अभिनंदन।।

उषा के स्वर्णिम सूरज से
केसर -आभा थाल सज़ा।
संबोध जगा मन भावों में
उत्कर्ष विचार-वितान बना।।

प्रज्ञा-चक्षु के खोल द्वार
जो बीत गया उसको बिसार।
नव राग सजाए होंठों पर
गा रहा स्वागत गरिमा-गान।।

लतिका सम आरोही उन्मुख
उन्नति शिखर का अभिलाषक।
हर मनुज हो हर्षित -उत्साहित
नव वर्ष का करता अभिनंदन ।।

हँसते-गाते बच्चों की टोली
खिलती सतरंगी फुलवारी।
मधुकर की गुँजन सी प्यारी
गूँज रही घर-घर किलकारी।।

जीवन की वाटिका महकाने
जन-मन कर रहा मधु-सिंचन।
प्रेम-सुरभित रजनीगंधा से
नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन।।

रचनाकार-
प्रेरणा शर्मा
जयपुर, राजस्थान

Saturday, 17 December 2016

माता-पितरौ

1-
जननी -मन
नीर भरा बादल
जीवन भर
आपूरित आकंठ
बरसे छन-छन ।

2-
पितु-ह्रदय
घनश्याम सजल
धीरज धर
स्नेह सिक्त तन-मन
झरता झर-झर।

3-
हे !मात-पिता
हे! युगल नयन
युग-युग का
सिंचित नेह-दान
मन-भाव सघन ।

4-
बस प्राणों में
साँसो के तार बने
हैं मात-पिता
दिल की धड़कन
जीवन के संबल ।
5-
संतति हेतु
जीवनदाता जीते
जीवन ध्येय
हरदम रहता
फल की सफलता।
6-
हिय सँभाले
हितआशीर्वचन
पलना झूले
मधुर मनोभाव
उर में प्रतिपल।

7-
पावन मृदु
जीवन सा जीवन
निर्मल स्वच्छ
बहता कलकल
जनक -जननी से।

रचनाकार-
प्रेरणा शर्मा 17-2-16

Friday, 16 December 2016

पूर्णिमा का चाँद


1-
खिली चाँदनी
रात  है रोशनी की
चुनर  ओढ़े।
2-
तारे सो रहे
तानकर चादर
चंदा जागता।
3-
चकोर चाहे
न बीते विभावरी
चंद्र निहारे।
4-
चांद चमका
शीतल प्यार भरा
मन बहका।
5-
रजत कांति
चंदा की जगमग
निंदिया कहाँ?
6-
पूर्ण चंद्रमा
चाँदनी बरसाए
खिलखिलाता।
7-
सैर करने
सपनों की दुनिया
मन मचले।
8-
चाँद- सितारे
रात के आगोश में
भाव-विभोर!
9-
मोहक लगे
शरद पूर्णिमा को
विधु चंद्रिका।

रचनाकार-
प्रेरणा शर्मा 17-12-16

Tuesday, 13 December 2016

नियति बीज की

'नियति बीज की'
-----------------
अलग ही है
नियति हर बीज की
मिलेगी उर्वरा या ऊसर भूमि
भुनेगा,पिसेगा,अंकुरित होगा
या नसीब में लिखी है नाली?
कौन जाने?
बनेगा छायादार विशाल वृक्ष?
बैठ जिसके नीचे
दादी-नानी सुनाएँगी कहानी।
कहानी में होंगे ?
परियों के क़िस्से
जंगल के राजा-रानी ?
कौन जाने?
प्रयोगशाला में
मैडम की ज़ुबानी
सुनेंगे बच्चे
उसकेअंकुरण की कहानी
या स्प्राउट्स बन मिलेगी
नाश्ते की थाली?
बनेगा पॉपकॉर्न ,दाल,आटा
या मिलेगा कोई माली?
जो बोएगा ,सींचेगा ,
देगा खाद-पानी।
पौधे से बनेगा पेड़
जन्म लेगी नई कहानी।
खिलेंगे फूल,लगेंगे फल
मिलेगा आसरा ?
बनेगा सहारा?
वर्षों तक खड़ा रहेगा
देखने को नित नया नज़ारा ?
कौन जाने?
किस बीज की नियति में
लिखा है
कौनसा नया ही किनारा ?

रचनाकार –
प्रेरणा शर्मा  (20-11-13)

Monday, 12 December 2016

मैंने शीश नवाया है

'मैंने शीश नवाया है'
––--------------------
मेरे घर के आँगन में
मैंने दो कचनार लगाए हैं।
कुछ दिन से वे दोनों
फूलों से लद आए हैं।
आशा के रंग भरें हों उनमें
मुझको ऐसा लगता है।
नीले-पीले पंखों वाली
एक प्यारी अदनी सी चिड़िया
अक्सर मीठा गीत सुनाती है
गहरे गुलाबी  फूलोंवाली शाखाओं  पर 
वह आती और इठलाती है
फुनगी-फुनगी छू-छू कर
फूल-फूल से बतियाती है।
उसकी वह उमंग- तरंग
मेरी रौनक बन जाती है।
बारी-बारी हर फूल पर
जब वह चोंच लगाती है
मैं जानू वह मेरे ही गालों पर
प्यारी सी थपकी दे जाती है।
इस प्यारी सी चिड़िया ने
जिससे जीवन पाया है
इन नन्ही कलियों को
जिसने फूल बना महकाया है
उसके अद्भुत अनजान स्वरूप को
भला  कब ,कौन समझ पाया है?
यह प्यारी अदनी सी चिड़िया
फुर्र-फुर्र करती
उड़-उड़ कर लहराती है
मेरे मन को अनायास ही
आशाओं के पंख लगाती है।
इसके इस सवच्छंद विचरण में
जिसने जीवन सींचा है
उस नायाब अमोल तत्व को
मैने शीश नवाया है,
मैंने शीश नवाया है।

रचना-
प्रेरणा शर्मा
20-11-13

Wednesday, 7 December 2016

जीवन -आशा

1-
जीवन -आशा
पल-पल सँजोती
स्वप्न सजीले
जिंदगी की राहों में
उज्ज्वल दीप सम।
2-
कभी न रुके
निसदिन मुग्ध हो
मन-मयूर 
नाचे बिन घुँघरु 
मस्ती में झूमकर ।। 
3-
 केकी नर्तक 
मोहे भुवि जन को
नाचे झूम के
गीत-संगीत बिन
बादल थाप पर।।
4-
वर्षा -फुहार
सावनझडी लगी 
रोके न रुकें
कारे-कारे बदरा
बरसें रिमझिम।।
5-
पावस ऋतु 
जीवन  का संचार
कर जग में 
मन को लुभा रही
शीतल सी बयार ।।
6-
आशा-बदली
सजल सघन हो
रीत रही है
धरा सरसाने को
मन हरसाने को।।

रचना-
प्रेरणा शर्मा ,जयपुर (2-12-16)

सबको बना लें अपना

'सबको बना लें अपना'
----------------------------
हरी-भरी वादियों में 
रुनक-झुनक हवा की पदचाप,
 धरा की धानी चुनर ,
प्रभात की सुनहरी रश्मियाँ ,
उषा की गुलाबी सी 
अलसायी धूप का साया ,
ओस के मोतियों की आब ,
सब खींचते हैं मुझे अपनी ओर।
निश्छल निर्मल भोर सम ,
मुखर होकर मेरी ओर ,
मानों कह रहे हो-
चलो मिलकर जी लें,
सपनों के इस जहान में।
सच कहूँ?
मन तो मेरा भी यही कहता है कि-
चुलबुली ओस को 
आँचल में समेटकर ,
पसरकर हरित दूब पर ,
गुनगुनी धूप की तरह
सुकुन के दो पल ही बितालें।  
कल्पना के पंख लगा,
उड़ चलें नीलाभ गगन में ,
ऊँचे ही ऊँचे ,
बादलों के पार ,
खो जाएँ
उनरूई के पहाड़ों में 
आशियाँ बनाकर
नरम मुलायम अहसास को 
साँसों में  जी लें सदा के लिए।
अनुराग की नदियों के संग-संग
मौजों में बह निकलें
हौले- हौले चहलक़दमी से  
फ़ासले  माप लें दूर बहुत दूर 
क्षितिज के वितान तक।
तितली से रंग माँगकर उधार
शब्दों मे भर लें 
जीवन को रंगीन बना लें।
 भँवरे से लेकर 
प्यार भरी गुंजार,
गुलाबों की सुरभि  से 
महकाएँ संसार।
कुहकें कोयल बन आम्रतरु पर,
दें तन-मन की सुध बिसार ।
नदिया से  सीख लें
 मौज में बहना
और सागर की तरह
 शील की गहराई से
 सबको बना लें अपना।

रचना -
प्रेरणा शर्मा (7-11-16)

Monday, 24 October 2016

मानिनी काम्या

'मानिनी काम्या'
-----------------
1-
लचक रही
कामिनी की कमर
मोहक लगे
मन में प्रीत जगे
सहज हौले-हौले।
2-
कुंतल केश
कमर पर झूलें
सधे क़दम
मंथर चाल चले
बल खाती बेल सी।
3-
मंद समीर
लहराता आँचल
मानिनी काम्या
इठलाते नयन
मधुर नेह भरे।
4-
हौले से डोले
मनवा संग-संग
पुरवाई सा
बिन पंख ही उड़े
जा कल्पना लोक में।
5-
निस्तब्ध बोल
अधरों पर धरे
तारीफ़ करें
या निहारें अपलक
चातक-चकोर से ।

  [रचना-प्रेरणा शर्मा]

इस तरह की कविता को 'तांका' कहते हैं।यह जापानी विधा है जिसमें हिंदी भाषी लोग भी अब खूब रचना कर रहे हैं।
इसमें अंत में तुकबंदी आवश्यक नहीं होती परंतु हर पंक्ति में निश्चित वर्ण
पहली में पाँच ,दूसरी में सात
तीसरी में पाँच चौथी में सात
और पाँचवी में सात वर्ण(अक्षर)
होते हैं।
    प्रेरणा शर्मा ,जयपुर (22-10-16)

भोर की शहनाई

हिन्दी की एक कार्याशाला में दिए गए शब्दों की सहायता से रचित यह  मेरी वह पहली  रचना है जिसको मेरे आत्मीय जनों की सराहना मिली और मैं लेखन के प्रति कर्तव्य-बोध को समझ पाई l
इसको  पोस्ट करने का  उद्देश्य उन सभी स्नेही जनों को धन्यवाद देना  भी है जिन्होने मुझे प्रोत्साहित कर मुझे सृजन के क्षेत्र की ओर कदम बढाने का होंसला दिया l लम्बी फेहरिस्त से बचने के लिये नाम  नहीं लिख रही हूँ l सबको हार्दिक धन्यवाद व  नमन !

"भोर की शहनाई"

बीती निशा हुई जब भोर,
सूर्य रश्मियाँ फैली सब ओर।
कृषक चला खेतों की ओर,
चिड़िया चहके नाचे मोर।
सड़कों पर लग रही सरपट दौड़ ,
वाहनों में मच रही हौड़ा-हौड़ ।
टीं-टीं टूं-टूं मच रहा शोर,
बच्चे चले स्कूल की ओर l
जैसे बँधे पतंग से डोर ,
बीती निशा हुई जब भोर।
चन्द्र-किरणों की हुई विदाई,
सूरज की लालिमा छाई।
तरुण-नारियाँ जल भर लाई,
नदियों ने ली अँगड़ाई ।
झीलों में गहराई समाई,
पेड़ों पर हरियाली आई।
अरुण-रश्मियों  डालीजान,
कमल खिले सरोवर पाल l
रंगों का मचा खूब धमाल ,
चीऊँ-चींऊँ करते पक्षी गान।
कुम्भकार ने किया कमाल,
सधे हाथों से लिया सम्भाल l
बाहर थपकी अंदर प्यार
सृजन किया उसने तत्काल।
चन्दा मामा की हुई विदाई,
भोर भई लालिमा छाई।
सूरज ने  जब ली  अंगडाई,
भोर की बज उठी  शहनाई l

     - प्रेरणा शर्मा ,जयपुर

Saturday, 15 October 2016

करवा-चौथ

'करवा-चौथ'
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कार्तिक मास की चतुर्थी के दिन
आता करवा-चौथ का व्रत ।
सुहागन नारियों का है त्योहार
युगों से  है यह प्यार का प्रतीक।
संचार-क्रान्ति के इस युग में
हम इसका देख रहें हैं
बदला- बदला सा स्वरूप।
सुबह होने से पहले ही
सरगी में भी होेते  तरह- तरह के
मँहगे रेडीमेड फ़ूड ।
सुंदर-सुंदर उपहारों का
सास-बहू में होता एक्सचेंज।
सुहाग-सामग्री के साथ में
होती नई डिज़ाइनर ड्रेस ।
नव-नवेली सा शृंगार सजे
मेंहदी का रंग खूब रचे ,
पर रूप-सज्जा के लिए
सुंदरता की होड़ में
पार्लर की दौड में 
सबका बढ़ रहा स्ट्रेस ।
परंपराओं का बदला दौर
पति का प्यार परखने पर ज़ोर ।
पति - पत्नी दोनों हैं व्रत निभाते
एक चाँद तो दूजा चाँदनी कहलाते।
भूख-प्यास की चिंता छोड़
सजसँवर कर सेल्फी की होड़
डी पी भी करनी होती है चेंज
फ़ेसबुक पर फ़ोटो अपलोड।
रंग बदलते ज़माने ने
सादगी पर दिया है पानी फेर।
डर है कहीं इस दौड़ में
हमें  ना हो जाए कहीं देर।
      -प्रेरणा शर्मा