करीब एक सप्ताह पहले ही दीपावली का त्योहार प्रकाश की जगमग से घर-आँगन, गली-मोहल्ले, बाजार
के ओने-कोने को दीप्त कर रहा था।
लक्ष्मी के आगमन का उत्साह सर्वहारा और पूँजीपतियों में कॉम्पीटीशन दे रहा था।
सबसे अधिक डिमांड साफ-सफाई करवाने के लिए
घर के काम करने वाले नौकर-दाइयों की थी।उनका विशेष ख़याल रखा जा रहा था। दोस्ती का यह रूप अघिकांश सभी जगह दिखाई दिख रहा था चाय-नाश्ते से लेकर खाने तक के लिए बड़े स्नेह से मनुहार की जा रही थी। मनुहार हो भी क्यों न,
आखिर उनके जरिए ही तो गणेश जी, सरस्वती जी और महालक्ष्मी जी उनके घर में चिरकाल तक विराजेंगें।
दीपकों के प्रकाश से पहले ही कृत्रिम दोस्ती के दीपकों से मन को आलोकित करने की परंपरा का पालन किया जा रहा था।
कृत्रिम ही सही काश ! यह दोस्ती का दीपक वर्षभर सर्वहाराओं के दिलों को जगमग रख सकता।
@प्रेरणा शर्मा २७-११-१९
सरस साहित्य
Sunday, 3 November 2019
दोस्ती का दीपक
Monday, 29 October 2018
परिवर्तन
कला की कश्ती में जीवन के तरानों को गुनगुनाते सितारों की चमक लुभाने लगी | वह भी उसी कश्ती में सवार हो चली | सितारों की चमक से खुद जगमगाने लगी | भाने लगा अपना ही रूप| इठलाने,इतराने की कला आने लगी| रिश्तों के रेशमी धागों से जादुई दरी बन आकाश छूने लगी | सतरंगी ख़्वाबों की वादियों में घूमते-घूमते
बाग-ए वफ़ा की महक उसमे भी आने लगी | शरद पूर्णिमा के चाँद की तरह सोलह कलाओं से शीतलता बरसाने की चाह में पूर्णता पाने लगी | इधर वक्त भी तो पंख लगाकर उड़ने लगा था |
कृष्णपक्ष के चंद्रमा की तरह उम्र ढलने लगी | वक्त के आईने में अपने अक्स को अपने आप से छुपाने लगी |अपने आप से बात करने से घबराने लगी | जो सहज था वह आकस्मिक लगने लगा | उम्र घर की दहलीज़ के अंदर आशियाँ तलाशने लगी |
यह शाश्वत सत्य होते हुए भी इस परिवर्तन को सहज ही स्वीकार कर पाना कठिन लगने लगा ।यों अचानक फिर एक बार विज्ञान से नजरें मिलाने का मन होने लगा | कला और विज्ञानं सब घुल-मिल से गए | जीवन के अनुभवों की रस्सी के सहारे तन-मनको झूलाते हौले-हौले मंजिल के करीब जाने में कुछ नवीन तलाशने लगी थी |
सच हैं एक बार जिस भी व्यक्ति,वस्तु ,स्थान देश, आदि के साथ रहते-रहते वे पहचाने से लगने लगते है । वह उन्हीं के अनुसार व्यवहार को ढा़ल लेता है और उनके तरीके से काम की आदत बना लेता है।
जब इनमें परिवर्तन होता है तो स्वभाविक है कई सारी शंकाएँ और विचार जन्म लेते हैं। निश्चिंत नहीं रह पाते
मन में विचलन सा महसूस होता है। फिर यह तो उसका अपना वजूद था !
नया कैसा होगा? इसके लिए अब समय के पंख वह स्वयं के लगा रही थी |
~प्रेरणा शर्मा (29-10-18 )
Sunday, 17 September 2017
माँ-दादी के हिस्से का इतवार
'आज का इतवार'
––––––––– -प्रेरणा शर्मा
इतवार की सुबह
बुन रही थी ख्वाब
जागते हुए सोने और
देर से उठने के लिए।
पता है ना आपको
घर सारा जागा था
कल देर रात तक ,
सुबह इतवार मनाने के लिए।
सुबह,माँ जाग तो गई थी
रोज की आदत जो हो गई थी
मगर सोते-सोते ही
करवटें बदल रही थी।
दादी की पूजा की घंटी
थम ही नहीं रही थी
अलार्म की आवाज सी
कानों में बज रही थी।
पिता अनमने से उठ बैठे थे
आज का अखबार हाथ में लिए
अंगड़ाई और उबासी को मिलाते हुए
चाय की चुस्कियों का ख्वाब जगाते हुए।
दादा जी नाश्ते के इंतजार में
मेरे पेट में भी चूहे लगे दौड़ने।
रसोईघर में लगे दोनों झांकने
वहाँ की शांति हमको लगी काटने।
चाय से ले सैंडविच तक का बीड़ा
हमने आज अपने कंधों पर उठाया।
कुछ फलों पर भी हाथ आजमाया
लगा सूरज पश्चिम से निकल आया।
दादी की घंटी ने
थोड़ा विराम पाया
जब तिरछी नजर को
रसोई की ओर घुमाया।
माँ और दादी ने जब
हमको रसोई में पाया
एक मीठी सी मुस्कान का
तोहफा हमने तुरंत पाया।
आज इत्मिनान का इतवार
यों हमने मिलकर बिताया
आज माँ-दादी के हिस्से में
उनका इतवार भी आया।
-प्रेरणा शर्मा ,जयपुर (17-9-17)
Saturday, 16 September 2017
प्रहरी की पत्नी
'धन्य है प्रहरीपत्नी'
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वह देखो प्रहरी की पत्नी
आशा-दृष्टि सीमा पर लगी।
दिन-रात चैन से सो न सकी
नयनों में नित हर रात कटी ।
वज्र बना उसने अपना हृदय
प्रिय को सीमा पर विदा किया।
सपनों की दुनिया से जाग आज
निज-प्रेम देशहित वार दिया।
अपनी पलकों के ख्वाबों में
प्रहरी के मन को बाँच लिया।
देश-प्रेम के जज्बातों के रंग से
झट उसके मन को सरोबार किया।
केवल उसकी हिम्मत है जो
हँसते-हँसते यों विदा किया
अकथ कहानी सी बनकर,
यथार्थ का साक्षात्कार किया।
आँखो से ओझल होते ही
नयनों से बह निकली निर्झरणी
थे अधर मौन मन-सागर प्लावित
धन्य है प्रहरी-पत्नी तेरी छाती।
-प्रेरणा शर्मा (17-09-17)
(चित्र इंटरनेट से साभार उद्धृत।)
Thursday, 24 August 2017
फोटोग्राफर बंदर जी
फोटोग्राफर बंदर जी
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एक बंदर
मस्त कलंदर,
लेकर मोबाइल
बन रहा फोटोग्राफर।
सुबह-सवेरे
एक दिन पहुँच गया
जंगल के अंदर।
शेर की आँखों में
झोंककर धूल
अपनी बंदरिया को देने
ले आया एक सुंदर फूल।
पहने रंग बिरंगी पतलून
घूम रहे दोनों जंगल में
जैसे घूम रहे हों रंगून ।
बंदरिया ने पहने झूमके
बंदर जी ने बाली
फुदक-फुदक कर
पेड़ की डाली-डाली।
एक डाल पर सिर टकराया
बंदर को झट आइडिया आया ।
बंदरिया को लगा रिझाने
बोला आ सेल्फी खिंचवाले।
एक हाथ में मोबाइल
दूजे में पकड़ी डाल
उसे दिखाने करतब
बंदर के मन में
लगे नाचने कई खयाल।
पूँछ लपेटी डाली पर
छोड़े दोनो हाथ
मुसका कर बोली बंदरिया
तूने तो कर दिया कमाल।
संग तेरे मुझको भी लटका ले
एक सैल्फी यों ही कुछ
लटके-झटकेवाली भी तो आने दे ।
दोनों संग-संग लटके डाली पर तो
डाली बोली चर्रम चूँ
गिरे धड़ाम से धरती पर तो
धरती बोली धम्मक-धूँ।
देखा उठकर
मोबाइल में तस्वीरें आई जोरदार
मोबाइल का लेटेस्ट वर्जन
फ्लैश भी था शानदार।
अब वे दोनों चले ढूँढने
सुंदर सा कोई दूजा सीन।
चलते-चलते शहर आ गया
दिखने लगे रंगबिरंगे सीन।
चौराहे पर नजर पड़ी तो
कोई सपेरा बजा रहा था बीन।
लेने को फोटो ज्यों ही बंदर
अबकी बार जब हुआ तैयार
फन फैलाकर साँप आ गया बंदरजी के पास
घबराकर बंदर यों बोला हो गया सत्यानाश
मोबाइल की क्लिक भूल गया
शकल हो गई पीली
बुरी तरह से डरे बंदरजी
पतलून हो गई गीली।
----------रचना-प्रेरणा शर्मा(24-8-17)
Sunday, 13 August 2017
हम हैं भारतवासी
'हम हैं भारतवासी'
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-प्रेरणा शर्मा
हम हैं भारतवासी भारत की शान बनेंगे
लिए हाथ में अपना तिरंगा आगे सदा बढेंगे।
संग जिएँगे संग मरेंगे, मिलकर हम रहेंगे
एक और एक मिलकर ग्यारह हम बनेंगे।
बैरी की छाती पर चढ़कर सीधे वार करेंगे
भारत माँ की रक्षा में पीछे न कभी हटेंगे।
'जयहिंद' का जयघोष जग में अमर करेंगे,
तकनीकि का कर विकास नाम अमर करेंगे।
भारत माँ के भाल को हम उन्नत सदा रखेंगे
हम भारत के वासी भारत का मान बनेंगे।
आसमां के फलक पर भारत का नाम लिखेंगे
आन बनेंगे अपने देश की मिलकर कदम चलेंगे।
"जय भारत' 'जय भारती ' हुँकार दिलों में भरेंगे
हम भारत के वासी देश की नाज़ का साज बनेंगे।
आसमां में ऊँचे ही ऊँचे ध्वज तिरंगा हम रखेंगे
हम भारत के वासी दुनिया में मिशाल बनेंगे।
हम हैं भारतवासी नहीं कभी किसी से डरेंगे
देखेंगे सपने शुभता के हिम्मत से पूरे करेंगे।
हम हैं भारतवासी भारत की ढाल बनेंगे
अमन-शांति का संदेशा देकर जगद्गुरु बनेंगे।
- प्रेरणा शर्मा(13-8-17)
सैनिक देश की शान
'सैनिक '
---------- -प्रेरणाशर्मा
है सैनिक देश की शान बना
सीमा पर सीना तान डटा ।
देश प्रेम के वसन पहन वह
सर्दी गर्मी में अडिग खडा़।
धड़कन में भारत गान बसा
'जन-गण-मन ' का मान बना ।
साँसों को भारत के प्राण बना
वह रक्षाहित आहुति को खड़ा।
नयनों में देशप्रेम के सपने
पलकों पर भारत की रक्षा ।
वह सीमा का सजग प्रहरी
जब वह जागा तो जग सोया ।
ममता को कवच बना पहना
आशीर्वचनों का तिलक लगा।
ध्येय पर हरदम ध्यान लगा
अरिदल को वह संहार चला।
वीर कर्तव्य-पथ पर सदा डटा
दुश्मन का क्रन्दन सुन के हँसा ।
उर के स्पंदन में 'जयहिंद' बसा
रग-रग में स्वदेश का प्यार बसा।
-प्रेरणा शर्मा( 14-8-17 )
( यह चित्र अन्तर्जाल से साभार उद्धृत किया गया है। )